महोबा पुलिस की लापरवाही: चोरी के मामलों को दबाने का अनोखा तरीका
महोबा पुलिस की लापरवाही: चोरी के मामलों को दबाने का अनोखा तरीका
महोबा: उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में पुलिस और न्याय विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कुलपहाड़ थाना क्षेत्र में 1987 में हुई जुगल किशोर मंदिर की मूर्ति चोरी का मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है।
मामला क्या है?
1987 में जुगल किशोर मंदिर से एक प्राचीन और मूल्यवान मूर्ति चोरी हो गई थी। घटना के समय पुलिस ने मामला दर्ज किया और इसे न्यायालय में प्रेषित कर दिया। लेकिन इसके बाद पुलिस ने इस मामले में किसी प्रकार की गंभीरता नहीं दिखाई।
पुलिस की घोर लापरवाही
पुलिस ने अपनी आख्या में लिखा कि चोरी का अनावरण नगण्य है।
इस रिपोर्ट को मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी दर्ज किया गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने यह मान लिया कि न्यायालय में इस मामले को कोई आगे नहीं बढ़ाएगा, जिससे मामला स्वतः ठप्प हो गया।
न्याय विभाग की भूमिका पर सवाल
न्यायालय में मामला प्रेषित किए जाने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
क्या यह न्याय विभाग की जिम्मेदारी नहीं थी कि मामले की जांच और सुनवाई को सुनिश्चित किया जाए?
क्या यह केवल पुलिस की लापरवाही है, या न्याय विभाग भी इस लापरवाही में शामिल है?
न्याय और पुलिस व्यवस्था पर प्रभाव
ऐसे मामलों से आम जनता का पुलिस और न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होता जा रहा है।
अपराधियों को खुला मैदान मिल जाता है क्योंकि उन्हें पता है कि ऐसे मामले वर्षों तक दबे रहेंगे।
जनता की मांग
स्थानीय नागरिकों ने इस मामले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है।
मुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय से अपील की गई है कि दोषियों को सज़ा दी जाए।
पुलिस और न्याय विभाग में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
निष्कर्ष
महोबा का यह मामला केवल एक चोरी का नहीं, बल्कि पुलिस और न्याय विभाग की खामियों का प्रतीक बन चुका है। यदि इस पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो यह भविष्य में और गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है।
(रिपोर्ट: विशेष संवाददाता)