गंभीर मामलों में जवाबदेही का अभाव: पत्रकारों का टूटता मनोबल

गंभीर मामलों में जवाबदेही का अभाव: पत्रकारों का टूटता मनोबल

देश में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन हाल के दिनों में देखा गया है कि गंभीर मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों और सरकार द्वारा जवाब देने से बचने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह स्थिति न केवल पत्रकारों के मनोबल को तोड़ रही है, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी कमजोर कर रही है।

गंभीर मुद्दों पर सरकार की चुप्पी

X (पूर्व में ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म पर हाल ही में कई ऐसे मुद्दे सामने आए हैं, जहां जनता ने सवाल उठाए, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों और सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। उदाहरणस्वरूप:

1. महत्वपूर्ण घोटाले: घोटालों के आरोपों पर न तो जांच की प्रक्रिया में पारदर्शिता है और न ही जनता को जानकारी दी जाती है।

2. हिंसा और अपराध: गंभीर अपराधों और सांप्रदायिक हिंसा पर सरकार की ओर से स्पष्ट प्रतिक्रिया का अभाव है।

3. जनहित के मुद्दे: शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर भी सरकार का रुख अस्पष्ट रहता है।

 

पत्रकारों पर बढ़ता दबाव

जब पत्रकार इन गंभीर मुद्दों को उजागर करने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें या तो धमकाया जाता है या उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। X पर कई पत्रकारों ने साझा किया कि:

उनके सवालों को नजरअंदाज किया गया।

सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ ट्रोलिंग और दुष्प्रचार किया गया।

कुछ मामलों में, उन्हें व्यक्तिगत और पेशेवर नुकसान सहना पड़ा।

मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरा

पिछले कुछ वर्षों में, मीडिया की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठे हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (World Press Freedom Index) में भारत की रैंकिंग लगातार गिर रही है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि पत्रकारों के लिए खुलकर सच्चाई सामने लाना कितना कठिन हो गया है।

घोर निंदा और जनता का आह्वान

यह स्थिति निंदनीय है। लोकतंत्र में सरकार की जवाबदेही और मीडिया की स्वतंत्रता आवश्यक है। जनता को चाहिए कि:

जिम्मेदार अधिकारियों से जवाबदेही की मांग करें।

पत्रकारों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए आवाज उठाएं।

स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करें और उसे मजबूत बनाएं।

निष्कर्ष

यदि सरकार और अधिकारी अपने उत्तरदायित्व को निभाने में असफल रहते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। पत्रकारों को भी चाहिए कि वे अपने मनोबल को टूटने न दें और सच्चाई के लिए लड़ाई जारी रखें। जनता और पत्रकारों को मिलकर इस स्थिति को बदलने की दिशा में कदम उठाने होंगे।

 

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