37 वर्षों से अनसुलझा जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड: मीडिया और प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल

37 वर्षों से अनसुलझा जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड: मीडिया और प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल

सुगिरा (महोबा): 37 साल पहले जुगल किशोर मंदिर से चोरी हुई ऐतिहासिक मूर्ति का मामला आज भी अनसुलझा है। इतने लंबे समय में न तो अपराधियों का कोई सुराग मिला, न ही चोरी की गई मूर्ति वापस लाई जा सकी। अफसरों की निष्क्रियता और मीडिया की उदासीनता इस कांड को भुला देने में सहायक बन गई है।

प्रमुख बिंदु:

1. प्रशासन की निष्क्रियता:

इतने वर्षों में प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

जांच के नाम पर सिर्फ औपचारिकताएं की गईं, लेकिन अपराधियों का पता लगाने में नाकामी हाथ लगी।

 

2. मीडिया की चुप्पी:

स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने इस ऐतिहासिक चोरी को गंभीरता से नहीं उठाया।

इस विषय पर कोई नियमित कवरेज नहीं दी गई, जिससे यह मामला दब गया।

मीडिया की उदासीनता के कारण जनता में जागरूकता नहीं फैल पाई।

 

3. जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी:

जनप्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर चुप रहे।

जनता के सवालों का जवाब देने और इसे उच्च स्तर तक उठाने में नाकामी रही।

 

4. जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायतें बेअसर:

स्थानीय लोगों ने कई बार जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायतें कीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

शिकायतें फाइलों में दबकर रह गईं और अपराधियों के हौसले बुलंद होते गए।

 

5. कानून व्यवस्था पर सवाल:

अपराधियों को पकड़ने में असफलता ने कानून व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है।

इतने साल बाद भी कोई ठोस सुराग न मिलना, प्रशासन की गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

 

मीडिया और प्रशासन की निष्क्रियता पर जनता का आक्रोश:

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि मीडिया और प्रशासन की निष्क्रियता ने इस ऐतिहासिक मामले को भुला दिया है। यदि मीडिया ने इसे प्रमुखता से उठाया होता, तो शायद सरकार और प्रशासन दबाव में आकर कार्रवाई करते।

जांच और कार्रवाई की मांग:

जनता की मांग:

मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।

दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।

चोरी गई ऐतिहासिक मूर्ति की बरामदगी सुनिश्चित की जाए।

जनप्रतिनिधियों से अपील:

इस मुद्दे को विधानसभा और संसद में उठाएं।

जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं।

 

सवाल जो प्रशासन और मीडिया से पूछे जाने चाहिए:

1. 37 साल का लंबा समय होने के बावजूद मामले की जांच क्यों नहीं पूरी हुई?

2. क्या अफसरों की निष्क्रियता ने अपराधियों को बचने का मौका दिया?

3. मीडिया इस ऐतिहासिक चोरी पर चुप क्यों रही?

4. क्या जनसुनवाई पोर्टल पर की गई शिकायतें केवल दिखावा हैं?

 

निष्कर्ष:

जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड सिर्फ एक ऐतिहासिक चोरी का मामला नहीं, बल्कि प्रशासन, मीडिया और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता का प्रतीक बन गया है। जनता को न्याय दिलाने के लिए अब जरूरी है कि इस मामले को प्राथमिकता देकर सुलझाया जाए।

 

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