अविरल बहती देख, जगत में गंगा धारा।
🥀छप्पय छंद🥀
विषय-गंगा
1-
अविरल बहती देख,
जगत में गंगा धारा।
जग में बढ़ता पाप,
गर्म है पापी पारा।।
धोती गंगा पाप,
पार भव सागर करती।
खोती मन का ताप,
धर्म से गागर भरती।।
गंगा की सुंदर धार है।
पाप मैल को काटती।।
गंगा का भारी तेज है।
पाप मेघ को छाँटती।।
2-
सूरज किरणें नीर,
चमकतीं हीरा कैसीं।
गंगा मीनें देख,
तड़फतीं मीरा जैसीं।।
शीत पवन बह मंद,
धार नागिन सी लहरें।
सुंदर लगतीं अंग,
नीर में जाके ठहरें।।
माँ गंगा मेरी शान हो।
गंगा सबकीं जान हैं।।
माँ गंगा गुण की खान हो।
उनके जग में मान हैं।।
💥🌼💥🌼🌼💥
🥀प्रभुपग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश