38 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा में जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड पुलिस ने जताई असमर्थता, न्यायालय में मामला अब भी लंबित
38 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा में जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड
पुलिस ने जताई असमर्थता, न्यायालय में मामला अब भी लंबित
सुगिरा (महोबा), 29 जनवरी। महोबा जनपद के सुगिरा गाँव स्थित जुगल किशोर मंदिर से 38 वर्ष पूर्व हुई बहुमूल्य मूर्तियों की चोरी का मामला अब भी न्यायालय में लंबित है। पुलिस ने मामले की विवेचना पूरी कर इसे न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया, लेकिन इतने वर्षों बाद भी इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।
घटना का विवरण
यह मामला 03 फरवरी 1987 का है, जब ग्राम सुगिरा निवासी मातादीन पाण्डेय पुत्र भानु प्रताप पाण्डेय ने थाना कुलपहाड़ में अज्ञात चोरों के खिलाफ मु0अ0सं0 20/1987 धारा 457/380 भादवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर में रात्रि के समय अज्ञात चोरों ने प्रवेश कर बहुमूल्य मूर्तियों को चुरा लिया था।
पुलिस की असमर्थता
38 वर्षों बाद भी जब इस मामले पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया, तो पुलिस ने अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। जब इस संबंध में पुलिस से जानकारी ली गई, तो उन्होंने कहा कि “हमने मामले की विवेचना करके इसे न्यायालय में भेज दिया है। यह घटना बहुत पुरानी हो चुकी है, इसलिए अब इसका अनावरण कर पाना संभव नहीं है।”
न्यायालय की धीमी प्रक्रिया पर सवाल
इस मामले में सबसे बड़ा प्रश्न न्यायालय की कार्यप्रणाली पर उठता है। 38 वर्ष बीत जाने के बाद भी न्यायालय ने इस मामले पर कोई ठोस निर्णय क्यों नहीं लिया? क्या न्यायिक प्रक्रिया इतनी धीमी है कि एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के मंदिर से चोरी हुई बहुमूल्य मूर्तियों की खोज आज तक नहीं हो सकी?
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी संदिग्ध
इस मामले को मीडिया ने कई बार उजागर किया, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। मंदिर समिति, ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी इस मामले को और भी संदिग्ध बना रही है।
कानून व्यवस्था पर सवाल
यह घटना कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को उजागर करती है। एक ओर सरकार धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की बात करती है, वहीं दूसरी ओर 38 वर्षों से लंबित इस मामले को देखकर लगता है कि कानून और प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट चुके हैं।
क्या होगा आगे?
अब देखना यह है कि क्या प्रशासन इस मामले को दोबारा खोलेगा और चोरी हुई मूर्तियों को खोजने का प्रयास करेगा? या फिर यह मामला इसी तरह न्याय की प्रतीक्षा में फाइलों में दबा रह जाएगा। जनता न्याय की मांग कर रही है, लेकिन क्या न्यायालय और प्रशासन उनकी आवाज़ सुनेंगे?
रिपोर्ट-लक्ष्मी कान्त सोनी