एक घर छोड़ नारी, दूजे घर जाती है । प्यार समर्पण की वो, मूरत कहलाती है

🌹 *माँ शारदे को नमन* 🌹

दिनांक – 08/03/2021
दिन – सोमवार
विषय – 🌹 *नारी* 🌹

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एक घर छोड़ नारी, दूजे घर जाती है ।
प्यार समर्पण की वो, मूरत कहलाती है ।।
नारी बिना अधूरा, सबको संसार लगे,
नारी जब आती है, घर को महकाती है ।।

गुड़िया से खेली जब, घर एक बनाया था,
एक राजकुमार तब, मिलने को आया था,
लाल चुनरिया तब भी, पहनकर दिखाती है ।
नारी जब आती है, घर को महकाती है ।।

दोस्तों में दोस्त एक, लगा बड़ा प्यारा था,
बातों ही बातों में, किया इक इशारा था,
शादी के वो सपने, तभी से सजाती है ।
नारी जब आती है, घर को महकाती है ।।

बचपन से पाल-पोष, पढ़ाया लिखाया है,
रसोई बनाने में, निपुण भी बनाया है,
जाकर ससुराल नई, जिंदगी बसाती है ।
नारी जब आती है, घर को महकाती है ।।

बोलती बहुत पर ये, उसकी मजबूरी है,
घर को तो घर जैसा, बनाना जरूरी है,
कभी दुर्गा कभी वो, काली कहलाती है ।
नारी जब आती है, घर को महकाती है ।।
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✒️ *राजकुमार छापड़िया*
मुंबई, महाराष्ट्र 🙏🙏

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