कृत्रिम खेती: विष से भी अधिक खतरनाक 

कृत्रिम खेती: विष से भी अधिक खतरनाक

प्रस्तावना
कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के नाम पर कृत्रिम खेती (Artificial Farming) तेजी से अपनाई जा रही है। हालांकि, यह पद्धति अपनी लागत, पर्यावरणीय प्रभाव और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण विष से भी अधिक घातक सिद्ध हो रही है। कृत्रिम खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, और आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों (GMO) का अत्यधिक उपयोग किया जाता है, जिससे भूमि की उर्वरता, जल स्रोतों, और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।

कृत्रिम खेती क्या है?

कृत्रिम खेती वह प्रक्रिया है, जिसमें प्राकृतिक साधनों की बजाय रसायन, हानिकारक कीटनाशकों और बायो-इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है। इस पद्धति में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है और प्राकृतिक संतुलन को पूरी तरह से अनदेखा किया जाता है।

मुख्य कारण और दुष्प्रभाव

1. रासायनिक उर्वरकों का अति प्रयोग

भूमि की उर्वरता को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।

ये उर्वरक फसलों की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाते हैं।

मिट्टी के सूक्ष्मजीवों का नाश होता है, जिससे प्राकृतिक पोषण चक्र बाधित होता है।

 

2. कीटनाशकों और हर्बिसाइड्स का जहर

कीटों और खरपतवारों से फसलों की सुरक्षा के लिए जहरीले रसायनों का छिड़काव किया जाता है।

ये रसायन धीरे-धीरे भोजन श्रृंखला में शामिल होकर मानव शरीर में कैंसर, त्वचा रोग, और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बनते हैं।

भू-जल और नदियां प्रदूषित होती हैं।

 

3. जीएमओ फसलों का प्रयोग

आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज (GMO) प्राकृतिक बीजों को प्रतिस्थापित कर रहे हैं।

ये बीज खेतों में जैव विविधता को खत्म कर देते हैं।

किसानों को मोनोपॉली कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उनका आर्थिक शोषण होता है।

 

4. मिट्टी और जल का प्रदूषण

रासायनिक खेती के कारण मिट्टी का अम्लीयकरण (Acidification) होता है।

ये जहरीले पदार्थ बारिश और सिंचाई के दौरान भू-जल को दूषित कर देते हैं।

जल स्रोतों में मछलियों और अन्य जीव-जंतुओं पर घातक असर पड़ता है।

 

 

स्वास्थ्य पर प्रभाव: जहरीला भोजन

कृत्रिम खेती से पैदा होने वाली फसलें शरीर के लिए धीरे-धीरे जहर का काम करती हैं। इनमें मौजूद अवशिष्ट रसायन कई घातक बीमारियों को जन्म देते हैं, जैसे:

कैंसर

डायबिटीज

हॉर्मोनल असंतुलन

गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर विशेष प्रभाव

तंत्रिका तंत्र की क्षति

 

कृषि पारिस्थितिकी पर प्रभाव

कृत्रिम खेती ने कृषि क्षेत्र के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर दिया है।

कीट प्रतिरोधक कीटनाशकों के प्रयोग से फायदेमंद कीट जैसे मधुमक्खियां और तितलियां खत्म हो रही हैं।

फसल चक्र का सामंजस्य समाप्त हो गया है, जिससे लंबे समय में पैदावार घटने का खतरा है।

 

किसानों की दुर्दशा

कृत्रिम खेती की पद्धति में किसान कर्ज के जाल में फंस रहे हैं। बड़े कॉर्पोरेट्स द्वारा महंगे बीज, रसायन और तकनीकों की बिक्री की जाती है, जिनसे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। ऋण और असफल फसलें उन्हें आत्महत्या तक मजबूर कर देती हैं।

विकल्प: प्राकृतिक और जैविक खेती

जैविक खेती: रासायनिक उर्वरकों की बजाय गोबर, हरी खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग।

बहु-फसली खेती: फसल चक्र के संतुलन के लिए विविध फसलों का उत्पादन।

जीवंत कृषि: जैव विविधता को पुनर्जीवित करना।

 

निष्कर्ष
कृत्रिम खेती के घातक परिणाम अब स्पष्ट रूप से सामने आने लगे हैं। यह पद्धति न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण और कृषि पारिस्थितिकी के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रही है। समय रहते यदि प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर रुख नहीं किया गया, तो इसके परिणाम भविष्य में और भी भयावह होंगे।

‘प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व ही एकमात्र समाधान है।’

 

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