कुंडलिया

कुंडलिया
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1-
जग-में ये छुपते नहीं,
भानु चंद्र अरु सत्य।
मित्र कभी छुपते नहीं,
जगमें काले कृत्य।।
जगमें काले कृत्य,
कोयला जैसे चमकें।
मत रहना अंजान,
गुणी सूरज से दमकें।
प्रभुपग करते नृत्य,
बाँध कर घुँघरू पग-में।
राम भजन सच मान,
सत्य हैं राघव जग-में।।
2-
राघव को मत भूलना,
करके अति अभिमान।
धर्म कर्म मत भूलिए,
भरके अति अज्ञान।।
भरके अति अज्ञान,
डगर मत अघ की चलना।
पावन प्रभुपग धूलि,
हमेशा सिर-पे मलना।।
प्रभुपग सच्चा ज्ञान,
सभी को देते माधव।
बोलो मेरे साथ,
प्रेम से माधव-राघव।।
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प्रभुपग धूल

 

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