पोल खोलती निरख मीडिया, जारी वैरा दारी है।

🥀ताटंक छन्द🥀
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कारोवार अबैध सुहाते,
सलिला सुरा रसाती है।
गाँजो देखो खूब विकाते,
लक्ष्मी जेब समाती है।।
वेरुजगारी बड़ी दुखारी,
भान समान तपाती है।
जब चूहे हैं पेट कूंदते,
लोचन रमा लखाती है।।
कारोवार अबैध—
धंधे नर अबैध विस्तारें,
मदिरा सुपर उतारी है।
सुरा तुरंग गली में डोलें,
गायव शिष्टाचारी है।।
गांजा विकता खुल्लम खुल्ला,
सबकी हिस्से दारी है।
लै कें चिलम पियें अब जन जन,
मद अवीर सिर धारी है।।
कारोवार अबैध—
जुआ शराव की कुदृष्टी से,
मच गइ हा हा कारी है।
चोरी लूट डकैती हत्या,
अबतो संकट भारी है।।
पोल खोलती निरख मीडिया,
जारी वैरा दारी है।
झूठा गुंडा एक्ट लगाते,
देखो कलम दुखारी है।।
कारोवार अबैध–
अफसर निष्क्रिय कामचोर हैं,
वौने हाथ दिखाते हैं।
बीस वरस लौ धूरा छानी,
जुगल किशोर लखाते हैं।।
सुगिरा का इतिहास पुराना,
अब ना वापिस पाते हैं।
किला ध्वस्त होता जाता है,
अफसर सुध ना लाते हैं।।
कारोवार अबैध–
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

 

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