मैं रहूं या ना रहूं भारत के लिए मेरे खून की एक एक बूंद तक निछावर
*मैं रहूं या ना रहूं भारत के लिए मेरे खून की एक एक बूंद तक निछावर*
*कानपुर* 30 अक्टूबर 1984 की शाम. उड़ीसा की राजधानी भुबनेश्वर में एक सभा आयोजित थी. ठसाठस भीड़. स्टेज पर इंदिरा थी. अगले साल चुनाव होने वाले थे. उसी के प्रचार के लिए इंदिरा उड़ीसा पहुंची थीं. अपनी स्पीच के दौरान इंदिरा बोलीं.,
*आज मैं ज़िंदा हूं. शायद कल ना रहूं. मुझे इस बात की परवाह नहीं है. मैंने एक लम्बी ज़िंदगी जी है. और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी लोगों की सेवा में बिताई है. अपनी आख़िरी सांस तक मैं सेवा करती रहूंगी. मेरे खून की हर एक बूंद भारत की एकता को मज़बूत बनाएगी*
31 तारीख की सुबह pmआवास के बाहर उनके ही गार्ड ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. पंजाब के हालात, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इन सब के चलते शायद इंदिरा को अंदेशा हो चुका था कि उनकी जान को ख़तरा है जनवरी की एक सामान्य सी सुबह थी. चुनाव का साल था. बोफ़ोर्स घोटाला अख़बारों की सुर्ख़ियों का हिस्सा था. लेकिन इस सुबह लोग उठे तो एक दूसरी खबर ने अख़बार में जगह बना ली थी. खबर दिल्ली के तिहाड़ जेल से थी. जहां 2 लोगों को हत्या के जुर्म में फांसी दी गई थी. हत्या भी कोई मामूली नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री की. आज ही के दिन यानी 6 जनवरी 1989 को इंदिरा की हत्या के जुर्म में केहर सिंह और सतवंत सिंह को फांसी दी गई थी.इंदिरा की हत्या में सीधे-सीधे दो लोगों का हाथ था. बेअंत सिंह और सतवंत सिंह. यही दोनों थे, जिन्होंने इंदिरा पर गोली चलाई थी. बेअंत सिंह को तो मौक़े पर ही मार गिराया गया था. और संतवंत को गिरफ़्तार कर लिया गया. तहक़ीकात में कुछ और नाम सामने आए. केहर सिंह, जो बेअंत सिंह का रिश्तेदार था और बलबीर सिंह. इसके बाद इन तीनों पर मुक़दमा चलाया गया.पुलिस की चार्ज शीट से जो कहानी सामने आई. वो कुछ इस प्रकार थी. ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले बेअंत सिंह बहुत धार्मिक नहीं था. लेकिन ब्लू स्टार के बाद उसकी सोच में अचानक परिवर्तन आया. वो अपने अंकल केहर सिंह के साथ अक्सर मोती बाग गुरुद्वारे जाने लगा. केहर सिंह सप्लाई एंड डिस्पोज़ल, महानिदेशक के ऑफ़िस में बतौर असिस्टेंट काम किया करता था. जुलाई 1984 की एक घटना का इंदिरा की हत्या से विशेष सम्बन्ध है. एक बार जब बेअंत सिंह गुरुद्वारे में कथा सुन रहा था, तभी अचानक वो बहुत भावुक होकर रोने लगा. तब केहर सिंह ने उससे कहा, ‘रो मत, बदला ले यहीं से बेअंत के दिमाग़ में इंदिरा की हत्या का ख़्याल उपजा. शुरुआत में ये बात सिर्फ़ केहर सिंह और बेअंत के बीच में थी. पुलिस की चार्जशीट के अनुसार सितम्बर महीने में बलबीर सिंह इस प्लान का हिस्सा बना. दोनों PM की सुरक्षा में तैनात थे. यहीं दोनों के बीच पंजाब के हालात पर चर्चा होने लगी. दोनों कुछ करने की सोच रहे थे. लेकिन सितम्बर 1984 तक कोई पक्का प्लान नहीं बना था. सितम्बर के पहले हफ़्ते में एक घटना हुई. जिसने दोनों के इरादों को पक्का कर दिया.पुलिस द्वारा दाखिल चार्जशीट के अनुसार सितम्बर की एक रोज़ बलबीर सिंह PM हाउस में तैनात था. दोपहर क़रीब डेढ़ बजे उसे एक बाज दिखाई दिया. जो उड़ता हुआ आया और PM आवास में मौजूद एक पेड़ पर जाकर बैठ गया. बलबीर ने जैसे ही बाज को देखा, उसने बेअंत को बुलाया और बाज की तरफ़ इशारा किया. बाज का रिश्ता सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह से है. इसलिए दोनों में तय हुआ कि बाज गुरु का संदेश लेकर आया है. ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना होगा. दोनों ने वहीं पर अरदास की और आगे मिलकर प्लान बनाने का निश्चय किया.14 अक्टूबर को बेअंत अपने घर से कुर्ता-पैजामा पहनकर निकला और सीधे केहर सिंह के घर पहुंचा. वहां से दोनों गुरुद्वारा मोती बाग पहुंचे और फिर RK पुरम सेक्टर 6 के गुरुद्वारे गए. वहां बेअंत ने अमृत पान किया. चूंकि बचपन से वो सिख धर्म के नियमों को फ़ॉलो नहीं करता था. इसलिए उसने प्रायश्चित के तौर पर गुरुद्वारे में झाड़ू लगाया. इसके बाद 17 तारीख़ को वो अपनी पत्नी बिमल कौर को सीस गंज गुरुद्वारे ले गया. और उसे भी अमृत पान करवाया पुलिसिया पूछताछ में सतवंत ने बताया कि 17 अक्तूबर को बेअंत से इस बारे में उसकी बात हुई. उस दिन बेअंत टॉइलेट रूम में अपनी पगड़ी बांध रहा था. सतवंत को देखकर वो बोला, पंजाब में जो कुछ हो रहा है, उससे सिख बहुत ग़ुस्सा हैं. इसके बाद उसने सतवंत से कहा, इंदिरा गांधी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं और इसका हर्ज़ाना उन्हें अपनी जान देकर चुकाना होगा. सतवंत इस बात के लिए राज़ी हो गया और इसके बाद तीनों, सतवंत, बेअंत और केहर सिंह की मुलाक़ात होने लगी.बेअंत की पत्नी का नाम था बिमल कौर. दोनों का प्रेम विवाह हुआ था. बिमल कौर ने कोर्ट को दिए बयान में इस साज़िश का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि 17 अक्टूबर की रात केहर और बेअंत उनके घर की छत पर खड़े थे. इस दौरान दोनों हत्या की साज़िश पर कुछ बात कर रहे थे. लेकिन जैसे ही बिमल वहां पहुंची, दोनों चुप हो गए. इसके कुछ देर बार सतवंत वहां पहुंचा. और तीनों ने मिलकर खाना खाया.20 अक्टूबर की रोज़ बेअंत का पूरा परिवार और केहर सिंह अमृतसर पहुंचे. 21 तारीख़ को सबने अकाल तख़्त के दर्शन किए. सतवंत को भी यहां पहुंचना था. लेकिन सतवंत नहीं आया तो बेअंत को लगा, सतवंत आख़िरी वक्त में धोखा न दे दे. दिल्ली पहुंचकर अगली मीटिंग में उसने सतवंत से कहा, अगर तूने धोखा दिया तो मैं तुझे ही गोली मार दूंगा.इंदिरा की हत्या से के दिन पहले दोनों ने अपनी ड्यूटी चेंज करवाई. 30 अक्टूबर को सतवंत ने कॉन्स्टेबल किशन से कहा, यार मेरे पेट में दिक़्क़त है. और तेरी पोजिशन के नज़दीक टॉइलेट पड़ता है. ये कहकर उसने किशन से ड्यूटी एक्सचेंज कर ली. बेअंत की भी उस दिन रात की ड्यूटी लगी थी. लेकिन उसने भी अपनी ड्यूटी चेंज करवा कर सुबह की कर ली. सुबह इंदिरा निकली तो बेअंत ने उन पर अपनी सर्विस रिवॉल्वर से फायर करना शुरू कर दिया. गोली लगते ही इंदिरा गांधी गिर पड़ीं. तब बेअंत सिंह ने सतवंत सिंह से चिल्लाकर कहा, यह सब देख-सुनकर सतवंत सिंह अपनी ऑटोमैटिक कार्बाइन से जमीन पर गिरीं इंदिरा गांधी पर गोलीबारी करने लगा. इंदिरा गांधी को इस हाल में देखकर सब-इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल ने उन्हें बचाने के इरादे से आगे बढ़े. सतवंत सिंह ने अपनी ऑटोमैटिक कार्बाइन का रुख रामेश्वर दयाल की तरफ कर दिया. और अपनी पूरी कार्बाइन इंदिरा गांधी और रामेश्वर दयाल पर खाली कर दी.सतवंत को तो उसी वक्त गिरफ़्तार कर लिया गया. लेकिन केहर सिंह और बलबीर की गिरफ़्तारी 3 दिन बाद हुई. पुलिस का दावा था कि बलबीर को एक बस अड्डे से पकड़ा गया जब वो भागने की फ़िराक में था. साथ ही पुलिस को बलबीर की जेब से एक पेपर भी मिला. जिसमें अलग-अलग तारीख और ‘फ़ेल्ट लाइक किलिंग’ जैसे शब्द लिखे हुए थे मामला सेशंस कोर्ट पहुंचा. जहां तीनों अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई गई. इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा. हाई कोर्ट ने भी मामले में सजा बरकरार रखी. लेकिन जब यही मसला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने बलबीर को लेकर पुलिस के दावों पर सवाल खड़े कर दिए.
बचाव पक्ष की ओर से राम जेठमलानी, पी.एन. लेखी और आर.एस. सोढ़ी जैसे बड़े-बड़े वकील पेश हुए थे. कोर्ट ने कहा,
पुलिस की ये थियोरी हास्यास्पद लगती है कि बलबीर एक महीने तक अपने साथ साज़िश का पेपर लेकर घूम रहा था. वो भी तब जब कि वो खुद एक पुलिस वाला था.कोर्ट ने माना कि बलबीर को पुलिस ने अगले दिन गिरफ़्तार कर गैर क़ानूनी रूप से 33 दिन तक हिरासत में रखा था. अभियोग पक्ष की कमज़ोर दलीलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बलबीर सिंह को रिहा कर दिया. और बाकी दो,केहर सिंह और सतवंत सिंह की सजा बरकरार रखी. इन दोनों की फांसी भी कई बार टली.एक बार तो वकीलों की दलील पर दिसंबर 1988 में ब्लैक वॉरंट तक टाल दिया गया. यह आजाद भारत के न्यायिक इतिहास में पहला मौका था, जब ब्लैक वॉरंट को टाला गया था. 6 जनवरी 1989 की सुबह 6 बजे दिल्ली के तिहाड़ जेल में सतवंत सिंह और केहर सिंह को फांसी दे दी गई
*नेटवर्क टाइम्स न्यूज़ चैनल से नफीस खान की खास रिपोर्ट*.