भगवान छन्द
भगवान छन्द
(स्वरचित)
(भ-भूमि+ग-गगन+व-वायु+आ-आग+न-नीर)
सूत्र-
य+म+स+र+त=5 गण=पाँच तत्व
मगण-(222)-शुभ गण-देवता-पृथ्वी-फल-लक्ष्मी
यगण-(122)शुभ गण-देवता-जल-फल-आयु
रगण-(212)अशुभ गण-देवता-अग्नि-फल-दाह
तगण-(221)अशुभ गण-देवता-आकाश-फल-शून्य
सगण-(112)अशुभ गण-देवता-वायु-फल-विदेश
मापनी-
122 222 112,
212 221=
25 मात्रा-2+5=2-शिव-शक्ति+5-पाँच तत्व
25 वाँ नक्षत्र पूर्वाभाद्रपद-नक्षत्र स्वामी गुरु-
गुरु अंधकार से प्रकाश की ओर लाते हैं।
गुरु सर्वोपरि हैं।
15 वर्ण-1 शक्ति+5 तत्व=सृष्टि (शिव)-शिव से छोटी इ की मात्रा अलग करने से केवल शव ही बचता है।
15 वाँ नक्षत्र-स्वाति-नक्षत्र स्वामी-राहु(अंधकार)-अंधकार नहीं हो तो प्रकाश का क्या महत्व।
चार चरण सम तुकांत
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1-
तुम्हीं से चंदा सूरज है,
आप से है व्योम।
धरा भी मेरा ईश्वर है,
आप से है ओम।।
तुम्हीं से पायी पावक है,
आप से है सोम।
प्रभा है तू ही दीपक की,
आप से है होम।।
2-
तुम्हीं से मेरा जीवन है,
आप से हैं राम।
तुम्हीं से गंगा सागर है,
आप से हैं श्याम।।
तुम्हीं से मैं भी रोशन हूँ,
आप से हैं काम।
तुम्हीं से प्यारी भोर सजे,
आप से है शाम।।
3-
नहीं भूलूँ मैं ईश्वर को,
आप से है ज्ञान।
धरा की तू रक्षा करता,
आप से है शान।।
बड़े हैं गौरी-शंकर जी,
आप से है मान।
तुम्हीं तो छाये हो जग-में,
आप से है जान।।
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प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश