_*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का हिन्दी प्रसिद्धीपत्रक*_
_*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का हिन्दी प्रसिद्धीपत्रक*_
_*महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालयके शोध निबंध ‘भयदायक चलचित्र का(‘हॉरर मूवी’ का) सूक्ष्म परिणाम’ को श्रीलंका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद में ‘सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुतकर्ता – प्रसारमाध्यम’ पुरस्कार !*_
*‘हॉरर’ चलचित्र देखने से व्यक्ति की नकारात्मकता में प्रचंड वृद्धि होती है !* – महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध से निष्कर्ष
हम मनोरंजन के लिए चलचित्र देखते हैं; परंतु भयदायक चलचित्र (‘हॉरर’) देखने के उपरांत उस चलचित्र का हम पर आध्यात्मिकदृष्टिसे क्या परिणाम हुआ है, इसका विचार न करते हुए हम अपना काम प्रारंभ कर देते हैं; परंतु भयदायक चलचित्र का परिणाम व्यक्ति पर बडी मात्रा में होता है और व्यक्ति की नकारात्मकता प्रचंड मात्रा में बढती है, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । श्रीलंका के ‘इंटरनेशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ ने श्रीलंका में आयोजित की हुई 8 वीं ‘सामाजिक विज्ञान परिषद’ में वे बोल रहे थे । उन्होंने भयदायक चलचित्र (हॉरर मूवी) सूक्ष्म परिणाम’ यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक तथा श्री. शॉन क्लार्क सहलेखक हैं ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा यह 80 वां प्रस्तुतीकरण था । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा अभी तक 15 राष्ट्रीय और 64 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए गए हैं । 7 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में शोधनिबंधों को ‘सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ मिले हैं ।
श्री. क्लार्क ने ‘वलय और ऊर्जा मापक यंत्र’ (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर (यू.ए.एस.)), बायोवेल (Biowell), और सूक्ष्म परीक्षण के माध्यम से ‘भयदायक चलचित्र’ (हॉरर मूवी) के होनेवालेे सूक्ष्म परिणामों का अध्ययन करनेके लिए किए हुए शोध से संबंधित जानकारी आगे दी गई है ।
*1. लोकप्रिय ‘भयदायक चलचित्र’ देखने के संदर्भ में प्रयोग :* प्रयोगशाला के स्टूडियो में 17 व्यक्तियों को भयदायक चलचित्र दिखाया गया । एक गुट ने वह चलचित्र दिन में देखा और दूसरे गुट ने वह रात्रि में देखा । यूएएस उपकरण व्यक्ति की सकारात्मकता और नकारात्मकता दर्शाता है । इसलिए चलचित्र देखने से पूर्व और देखने के उपरांत भी वलय की प्रविष्टियां अंकित की गईं । बायोवेल उपकरण मनुष्य के चक्रों की शक्ति की स्थिति/क्षमता दर्शाता है, इसलिए उस उपकरण द्वारा भी परीक्षण किए गए ।
*1 अ. ‘यूएएस’द्वारा किया गया ‘भयदायक चलचित्र’ का वलय पर (ऑरा पर) होनेवाला परिणाम :* नकारात्मकता में औसत 107 प्रतिशत वृद्धि हुई थी अर्थात दोगुनी वृद्धि हुई थी । कुछ लोगों में वह वृद्धि 375 प्रतिशत थी । प्रयोग से पूर्व जिन व्यक्तियों का वलय (ऑरा) सकारात्मक था । वह 60 प्रतिशत घट गया था तथा कुछ व्यक्तियों का सकारात्मक वलय पूर्णतः नष्ट हो गया था ।
दूसरे दिन सवेरे की गई प्रविष्टियों के अनुसार भी उनका वलय पूर्ववत नहीं हुआ था । वास्तव में वह चलचित्र देखने से पूर्व उनके वलय की नकारात्मकता में और 55 प्रतिशत वृद्धि दिखाई दी । जिन व्यक्तियों ने वह चलचित्र रात्रि में देखा था, उनकी नकारात्मकता में, जिन्होंने दिन में वह चलचित्र देखा था उनकी 31 प्रतिशत की तुलना में 112 प्रतिशत वृद्धि दिखाई दी ।
*1 ब. बायोवेल द्वारा किया गया अध्ययन :* चलचित्र देखने से पूर्व एक व्यक्ति के निरीक्षण में उसके सर्व चक्र साधारणतः एक रेखा में थे । उनका आकार भी बहुत बडा था अर्थात व्यक्ति स्थिर और ऊर्जावान था । चलचित्र देखने के उनरांत उसके चक्र अव्यवस्थित दिखाई दिए और उनका आकार भी छोटा हो गया था अर्थात वह व्यक्ति अस्थिर और उसकी साधारण क्षमता घटी हुई दिखाई दी ।
*2. ‘भयदायक चलचित्र’ के निर्देशक, पटकथा लेखक और कलाकारों के संदर्भ में शोध :* हमारे छायाचित्र हमारे स्पंदन अंकित करते हैं । इसलिए उस चलचित्र में भूमिका करने से एक वर्ष पूर्व, वह करते समय, उसके प्रीमियर के समय और 1-2 वर्षों के उपरांत उन कलाकारों के ‘यूएएस’ द्वारा परीक्षण कर निरीक्षण अंकित किए गए ।
समय निकलते निकलते निर्देशक के वलय अधिकाधिक नकारात्मक होते गए । उसके मुख्य कलाकार के वलय अधिक नकारात्मक थे । उस चलचित्र के कारण दो कलाकारों की बढी हुई नकारात्मकता उसके उपरांत कभी नहीं सुधरी । पटकथा लेखक का नकारात्मक वलय सर्वाधिक था । चलचित्र से पूर्व उनका वलय 59 मीटर से प्रारंभ होकर चलचित्र के उपरांत प्रीमयर के 3 वर्षों के 2 रे भाग में (सीक्वल) 84 मीटर तक पहुंच गई थी । इनमें से किसी का भी वलय सकारात्मक नहीं था । ऐसे नकारात्मक व्यक्ति अपने प्रभाव से पटकथा लेखक, निर्देशक और कलाकारों को समाज में नकारात्मकता फैलानेवाले चलचित्र बनाने हेतु प्रेरित करते हैं ।
हमारे शोध द्वारा हमने यही जाना है कि, ‘भयदायक चलचित्र’ देखने से केवल भावनात्मक परिणाम नहीं होता, अपितु सूक्ष्म स्पंदनों के स्तरपर होनेवाले भयंकर परिणामों का हमें भान भी नहीं होता । सूर्यास्त के उपरांत अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव वातावरण पर अधिक होने के कारण उस समय ऐसे चलचित्र देखना अधिक संकटदायी होता है ।
आपका विनम्र,
*श्री. रुपेश लक्ष्मण रेडकर*,
शोध विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय,
(संपर्क : 9561574972)