गणेश वन्दना

शीर्षक_ गणेश वन्दना

गौरा जी के लाल का अनुपम देखो रुप,
कर जोर गुणगान करूं मनोहर स्वरुप।
एकदंत, गजवदन ,विनायक भगवन,
प्रथम पूजन हो आपका मंगल मूर्ति रुप।।

रिद्धि- सिद्धि पत्नी संग देते शुभ लाभ,
मोदक का भोग लगाऊं पूरन करो काज।
जग दुखहर्ता,जनसुख कर्ता हो मंगल के दाता,
जय गिरजा सुत, गौरी नंदन नमन तुम्हें आज।।

मूषक सवारी है, पिता त्रिपुरारी है,
जगत माता पार्वती मात तुम्हारी है।
कृपा निधान ,विश्व में लुभावने गणादि है,
निरोग काम से रहित हम शरण तुम्हारी हैं।।

महानता तिमिर हरे, सुबोध ज्ञान दीजिए,
विदेह देह को धरे विचार वान मानिए।
विधान कर्म ज्ञान से प्रथा प्रधान हो गए,
कुशाग्र बुद्धि धार के बड़े महान मानिए।।

गजानन आठ अवतार तुम्हारे हैं,
वक्रतुंड अवतार में किए काज सारे हैं।
मत्सरासर राक्षस का तुम संसार किए,
राग द्वेष मुक्त करो खुशियां तुम पर वारें हैं।।

 

रचना✍️
नम्रता श्रीवास्तव (प्र०अ०)
प्रा०वि० बड़ेहा स्योंढ़ा
क्षेत्र -महुआ, जिला- बांदा

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