अर्धांगिनी

शीर्षक – अर्धांगिनी

तन मन को मिलीं खुशियां, लगे जीवन ये प्यारा है।
विश्वास की उनसे मिली, अविरल एक धारा है।
अर्धांगिनी कह कर, जिन्हें हमने पुकारा है।

किया श्रृंगार सोलह, पिया के घर वो अईं हैं।
संग सखियाँ वो बचपन की, गलियाँ छोड़ आईं हैं।
बंधा जो सात बंधन से, रिश्ता सबसे न्यारा है ।
अर्धांगिनी कह कर…..

रहे अंजान आपस में, सपने एक हैं सारे।
कहां तक दूर रहते तुम, संग चलना जब हमारे ।
मिलना था हमें इक दिन, प्रभु ने खुद विचारा है ।
अर्धांगिनी कह कर…..

छोड़ बाबुल का दर, मेरे वो संग आई है।
वचन के बंधनों को भी, अपने संग लाई है।
मिले मोती नए रिश्तों के, प्यार से संवारा है।
अर्धांगिनी कह कर…..

चली जीवन की गाड़ी, गति उसमें भी आई है ।
जिम्मेदारियाँ दोनों ने, मिलकर संग उठाईं हैं ।
सुख में साथ मेरे सब, दुख में वो सहारा है।
अर्धांगिनी कह कर……

यज्ञ कोई हो या, पूजा हो कोई छोटी।
उनके बिना कहां संभव, कोई बात है होती ।
साथ मेरे जब से आईं, लगे संसार सारा है।
अर्धांगिनी कह कर………

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स्वरचित- *रश्मि शुक्ल*
रीवा (म.प्र)

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