चोरी-चोरी चुपके-चुपके, माधव अन्तर्ध्यान है
*चोरी-चोरी चुपके-चुपके, माधव अन्तर्ध्यान है।…*
*नटखट कान्हा वसन चुराकर,छेड़े मुरली तान है।…*
जल क्रीड़ा आनंद उठाती, नित्य गोपियाँ वृन्द है।
वस्त्र त्याग मदमस्त रहे ज्यों, नीर मध्य मकरंद है।।
सीख सिखाने ग्वाल गोपियाँ, कहते लाला नंद से।
एक योजना कृष्ण बनाओ, उन्मूलक हो द्वंद से।।
*सर्प मरे लाठी मत टूटे, कृष्ण सुझाते ज्ञान है।…*
*नटखट कान्हा वसन चुराकर,छेड़े मुरली तान है।…*
पालन करते ग्वाल बाल सब, कान्हा के उद्गार का।
कदम डाल में बाट जोहते, ग्वालन जल मनुहार का।।
स्नान चलीं निर्वस्त्र गोपियाँ, प्रतिदिन था व्यवहार में।
वसन चोरियाँ करके केशव, वेणु बजाते डार में।।
*लौटादो अब चीर हमारे, नटवर ये अभिमान है।…*
*नटखट कान्हा वसन चुराकर,छेड़े मुरली तान है।…*
उतर डार से कान्हा आए, सहमी ग्वालन लाज से।
शपथ हमें दो पुनः नहीं हो, गलती ऐसी आज से।।
कान पकड़ती रुष्ट गोपियाँ, त्रुटियों के आभास में।
ज्ञान माँगती हाथ जोड़कर, विनय प्रेम अरदास में।।
*जीव चराचर लाख देखते, सखियों यह अपमान है।…*
*नटखट कान्हा वसन चुराकर,छेड़े मुरली तान है।…*
डॉ ओमकार साहू *मृदुल*