इस कदर दिल टूटा कि ,जीने की चाह नहीं रही
इस कदर दिल टूटा कि ,जीने की चाह नहीं रही
अश्क इतने बहे कि समुन्दर को पानी की जरूरत नही रही
एक सैलाब सा आया जीवन में कि हमें जीने की
जररूत नहीं रही
हमने तो तेरी इबादत की , तुझे पूजा , तुम तो
हमारी कायनात रही
इस कदर दिल टूटा कि जीने की चाहत नहीं
रही
क्यो तोड़ दिया ,बीच मझधार में हमें छोड़ दिया
कुछ तो वजह बताई होती
अब हमें जीने की आरजू नहीं रही
बहते हुए अश्को से पूछो ,न जाने कितने अरमान
बह गए ,हर उम्मीद टूटी हर ख्आब अधूरे रह गये
अब कोई उम्मीद नहीं रही,
इस कदर दिल टूटा कि जीने की चाह नहीं रही
अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश