अग्र छन्द आधारित गीति काव्य

अग्र छन्द
आधारित गीति काव्य
विधान~
(तगण×7+ गुरु गुरु)
विशेषता-
अधर(होंठ से होंठ
स्पर्श रहित)
————————–
221 221 221 22
1 221 221 221 22
————————–
छाई सुहानी घनी रात काली,
खड़ी नैन देखूँ वही रात काली।
तारे सुहाने खिले हैं निराले,
खिली चाँदनी है सजी रात काली।।

आओ चलें साथ देखें नजारा,
खिला चाँद न्यारा घिरीं हैं घटाएँ।
न्यारा जहाँ से यहाँ का नजारा,
चलो आज देखें घनी रात काली।।

सोती हुई ऐ कली आज देखो,
खुले नैन काले लगाते निशाना।
सोते हुए जीव देखो यहाँ के,
उठो आज देखें धनी रात काली।।

राहें यहाँ हैं निकासी कहाँ से,
अरे ओ विधाता कहाँ से गली है।
आओ यहाँ ज्ञान गंगा नहालो,
लखें चैन से ऐ सही रात काली।।
————————————–
प्रभुपग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *