“सावन बहका

“सावन बहका”

लो जी सावन बहका है,
बूंदों पर मस्ती है ,मनवा भी उसका है।

बरसा सावन है,
ऋतु मनभावन है,
इस अलमस्त आलम में,
मास बड़ा पावन है।।

कलियों पर है बहार, भंवरा भी बहका है।

भोले का गुणगान है,
मस्ती में जहान है,
गौरा संग भोले में,
रमता सकल जहान है।।

मंदिर में है निराकार, भक्त भी चहका है।

कोयलिया कूक रही,
बदली को हेर रही,
विरहन की आंखों में,
निराशाएं घेर रहीं।।

यौवन पर है निखार, तन मन दहका है।

रचना✍️
नम्रता श्रीवास्तव (प्र०अ०)
प्रा०वि० बड़ेहा स्योंढा
क्षेत्र-महुआ,जिला-बांदा (उत्तर प्रदेश)

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