ऐ ज़िंदगी जरा रुक जा थोड़ा सम्भल। क्यों बेताबी है आगे बढ़ने की यूँ न मचल
ऐ ज़िंदगी जरा रुक जा थोड़ा सम्भल।
क्यों बेताबी है आगे बढ़ने की यूँ न मचल।।
देखे थे कुछ ख्वाब जो पूरे नहीं हुए हैं।
कुछ सपने रह गए पीछे आहिस्ता चल।
भाग दौड़ की दुनिया में आगे चली आई।
कुछ अपने रह गए पीछे लेकर साथ चल।।
रोशनी की चाह लेकर तेरे साथ चल पड़ा।
रोशनी न मिली कभी तू अंधेरे से निकल।।
बड़ी कशमकश है तुझे जीने में ऐ जिंदगी।
तेरे लिये ही बीत रहा है जीवन का हरपल।।
सुबह उठते ही शुरू हो जाती है भाग दौड़।
थक गया हूँ दौड़ते-दौड़ते दे आराम एक पल।।
यहाँ समझा ही है किसने जिंदगी को कभी।
हंसी और उदासी भरा है जीवन का पल।।
ज़िंदगी खुद थक जाएगी एक दिन ‘चन्दन’।
हाथ थामकर बोलेगी अब मौत के द्वार चल।।
स्वरचित
[केसरवानी©चन्दन]
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश
8090921177