आ जाओ रे मेघ
*शीर्षक – आ जाओ रे मेघ*
धरती रही पुकार
अब आ जाओ रे मेघ,
तुम बिन सूने हैं मेरे
नैन, उर और नेह।
प्राणी सब जल रहे
मच रहा हाहाकार,
कोरोना की मार भी
पकड़ रही फिर रफ्तार,
ताल, तलैया, पोखर सब,
तुमरी देखें राह, सूख
रहे दिन रैन ये,
अच्छी नही ये बात।
प्राणी, पशु अतृप्त हैं,
उनको बस तुमसे ही आस।
मानवता पर करुणा कर,
दर्शन दो अब मेघराज।
रूठो न अपनी धरती से,
हो इसका शिंगार तुम्ही,
तुमसे ही है जनजीवन,
प्रकृति का मांगसिंदूर तुम्हीं।
*प्रियंका श्रीवास्तव*