शंकर छंद
शंकर छंद।
सृजन शब्द। अलमारी पुराने खत।
यति-16,10.
मैंने खोली जब अलमारी, खतों का अंबार।
खो गई यादों में पुरानी, आई लगातार।।
एक एक कर रही देखती,थीअपलक निहार।
हो गये हैं किस्से कहानी,पलटूँ बार बार।।
कहाँ से पढ़ने की शुरुआत,करूँ हर खत यार।
मैंने खोली जब अलमारी, खतों का अंबार।।
मेरे खत में रखी धरोहर,ढूँढे मिले आज।
कब तक संभालूँ सौगातें,शुभ घड़ी में काज।।
मेरे खत हैं मेरी पूँजी, पिया का है प्यार।
मैंने खोली जब अलमारी, खतों का अंबार।
अब खत कहीं नहीं मिलते हैं। डिजीटल पैगाम।
मोबाइलों आदान प्रदान, हो रहा सब काम।।
खतों को बार बार देखती,स्नेह और प्यार।
मैंने खोली जब अलमारी, खतों का अंबार।।
स्वरचित छंद तृप्ता श्रीवास्तव।