दुर्मिल सवैया
दिनाँक – 14/07/2021
दिन – बुधवार
विषय – *योग*
विधा – *दुर्मिल सवैया*
24- वर्ण , आठ सगणों – (।।ऽ) ,12, 12 वर्णों पर । अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास कहा जाता है। इस छन्द को तोटक वृत्त का दुगुना कहा जाता है।
112 112 112 112, 112 112 112 112
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तज नींद सुभोर उठो नित ही, सुखदायक योग सदा करिए ।
मन देह करे परिपुष्ट यही, इससे मन में शुचिता भरिए ।
मन मंदिर सा रख स्वच्छ सदा, तन से दुख व्याधि सभी हरिए ।
यह आलस है रिपु त्याग इसे, नित योग करें प्रण ये धरिए ।।
अपनाकर रक्षक योग सदा, निज जीवन पे उपकार करें ।
इससे कर आत्मिक शुद्धि सदा, शुभ सात्विक बुद्धि विचार करें ।
उठ नित्य दिवाकर से पहले, कर योग सभी सुखसार करें ।
हर रोग डरे भयभीत रहे, सुख से मन में उजियार करें ।।
यह योग सजीवन है समझो, इससे हर रोग सदा डरता ।
अवगुंठन को सब खोल यही, मन बुद्धि प्रफुल्लित ही करता ।
अति स्फूर्ति भरा कर जीवन को, नव चेतनता मन में भरता ।
यह रक्षक ढाल बना नित ही, हर रोग विकार सभी हरता ।।
*इन्द्राणी साहू”साँची”*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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