गुनाह
गुनाह
विधा गजल
मोहब्बत में हमने ये क्या कर लिया,
निगाहें मिलाकर गुनाह कर लिया.
कुछ सोचा ना समझा न कुछ बात की,
हाल दिल का यूँ अपने बयाँ कर लिया.
प्यार की डोर उनसे कुछ ऐसी बंधी,
खुद को भी हमने उनमें फ़ना कर लिया.
सादगी थी भरी, आवाज मीठी बड़ी,
प्यार उनसे हमने बेपनाह कर लिया.
कोई रूठे या नाराज़ हो साधना,
हमने उनको तो अपना खुदा कर लिया.
स्वरचित एवं मौलिक
साधना तिवारी रीवा