आशियाने को… बनाने के… लिए
ग़ज़ल
आशियाने को… बनाने के… लिए
खाई ठोकर मैने गैरो के लिए
वह जहां को ,छोड़ के अब चल दिए
तोड़ के रिश्ते… सपने के लिए
बह रहे हैं अश्क नैनो से…. यंहा अब
हैं तरसते नैन खुशियों.. के लिए
अब यहां कोई दिलासा दे मुझे
छोड़ के हम जा रहें खुद के लिए
इस महामारी से हैं सहमे हुए
आएगी फिर मौत बुलाने के लिए
आमना तुझको सब्र करना पड़ेगा
मुल्क को अपने बचाने के लिए
आशियाने को… बनाने के…लिए
खाई ठोकर मेने गैरो के लिए ।
आमना ख़ातून