आप ही विचारिये
मनहरण घनाक्षरी
आप ही विचारिये
*
*1*
*आप ही विचाइये*
हर ओर बढ़ी भीड़,
तोड़ रही जग रीढ़,
सुविधाएँ घट रहीं,
आप ही विचारिये।
कारण जनसंख्या के,
प्रतिदिन बढ़ रही,
रोटी की किल्लत पर,
बवाल मिटाइये।
*2*
रोजगार घट रहे,
अपराध बढ़ रहे,
कारण है जनसंख्या,
भूखे मुस्कुराइए।
रोको जनसंख्या बम,
सुखी बनाओ आगम,
अब ना बढ़े आबादी,
नीति यों बनाइये ।
*3*
एक पुत्र की आस में,
बढ़े आबादी पास में,
पुत्र पुत्री लिंग भेद,
विकार मिटाइये।
दो तुम संतान पालो,
सौगंध सभी ये खा लो,
सुखी होगा जीवन ये,
वादा तो निभाइये।
*4*
सबको भोजन मिले,
खुशियों के पुष्प खिले,
सीमित आबादी होगी,
मधु गीत गाइये।
उचित शिक्षा मिलेगी,
रंगत तभी खिलेगी,
यथोचित उपचार,
चिकित्सा में पाइए।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी,कानपुर नगर