मनुजता
मनुजता
मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे,
साथ गर चाहे तो सहयोग ही करें।
गिरने में कोई शर्म नहीं है प्यारे,
मनुष्य है वही जो, है इस सोच से परे।।
मत घबरा प्यारे अभी इंसानियत बाकी है,
इस जहां में अभी भी शराफत बाकी है।
क्या हुआ जो तू ऐसे गिर गया,
गिरकर संभलने में भी सम्मान काफी है।।
खौफ है, सन्नाटा है, जग में भय व्याप्त है,
खो गई है खुशियां सुख अभी अप्राप्त है।
संवेदनाएं तो जैसे दम ही तोड़ चुकी है,
भूल गए हम कि ऊपर एक ईश्वर व्याप्त है।।
प्रेमाभाव से अगर रहें एकता अक्षुण्ण होगी,
भारतीय संस्कृति की गरिमा पोषित होगी।
वाणी की मधुरता जग में खुशहाली लाएगी,
धैर्य का सद्गुण होगा, सहयोग की भावना होगी।।
सन्नाटे की चादर ने इतने पैर फैला रखे हैं,
मानव के दिलो-दिमाग पर अहम के बादल छंटे हैं।
समय हमारी परीक्षा का मानो अब सब,
कदम अपने सब विनाश पर जो रखे हैं।।
रचना✍️
नम्रता श्रीवास्तव (प्र०अ०)
प्रा०वि० बड़ेहा स्योंढा
क्षेत्र-महुआ, जिला-बांदा (उत्तर प्रदेश)