आज भी

आज भी
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मेरे गीतों में जीवित आज भी मेरी प्रेम कहानी है
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

तुमको खोकर मन मेरा शमशान हुआ
विरह अग्नि में जलकर मन मेरा श्याम हुआ

हम तेरे नाम लिखित आज भी मेरा मन वैरागी है
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

गंगा सी निर्मल गीता के सार सा प्रेमग्रन्थ मेरा
शबरी के चखे झूठे बेर सा है अनुबंध मेरा

अगले जनम होगा मिलन आज भी मेरा मन आशीहै
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

गीतों की तुरपाई से विरह घाव मै सिलती हूँ
जुगनू सी जलकर रातो में आज भी मिलती हूँ

तू साँसो में मेरी आज भी मेरा मन खाली है
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

ख्वाहिश में सिमटी तेरे नैनों की बूंद हूँ मै
साजिश में सिमटी गैरों की भूल हूँ मै

आखर-2ढ़ाई आखरआज भी मेरा मन आशावादी है
मेरे लब्जों में अमर आज भी मेरी अमर जवानी है

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कवियित्री
कल्पना भदौरिया “स्वप्निल ”
लखनऊ
उत्तरप्रदेश
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