मेरी कविता में ढल जाओ तुम

*मेरी कविता में ढल जाओ तुम/*

*गीत*

*मेरे कलम की बन जाओ स्याही*
*मेरी कविता में ढल जाओ* *तुम* ।
*एक राग बसंती बनकर ही,*
*मेरे शब्दों में घुल जाओ तुम।।*

मेरे मन की इस वीणा को,
तुम प्रिय प्रेम से झनकाओ,
शीतल एहसास के झोंकों से,
मेरी सांसो को महकाओ,
मेरे इस जीवन उपवन में,
एक गुल बनकर खिल जाओ तुम,
*मेरे कलम की बन जाओ स्याही,*
*मेरी कविता में ढल जाओ तुम।*

तन्हा जीवन की चौखट पर,
मेरा साया तुम बन जाओ,
व्याकुल तपते मन आंगन पर,
रिमझिम बारिश तुम बरसाओ,
मेरी आशा के दीप बनो,
जगमग जगमग जल जाओ तुम,
*मेरे कलम की बन जाओ स्याही,*
*मेरी कविता में ढल जाओ तुम।*

*मेरे कलम की बन जाओ स्याही,*
*मेरे शब्दों में ढल जाओ तुम।*
*एक राग बसंती बनकर ही,*
*मेरे शब्दों में घुल जाओ तुम।।*

*डॉ मीनाक्षी गंगवार*

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