जिंदगी हंस के गुजारो तो कोई बात बने। भावना मन की संवारो तो कोई बात बने।।
जिंदगी हंस के गुजारो तो कोई बात बने।
भावना मन की संवारो तो कोई बात बने।।
आइना सब को दिखाने से भला क्या होगा।
अपनी सूरत भी निहारो तो कोई बात बने।।
नाव अपने लिए तुमने जो बनाई उस से।
किसी को पार उतारो तो कोई बात बने।।
जिस तरह द्रौपदी की आस ने पुकारा था।
उसको वैसे ही पुकारो तो कोई बात बने।।
बढ़ती इच्छाएं भी रावण से कम नहीं होती।
अपनी इच्छाओं को मारो तो कोई बात बने।।
राम के नाम को रटने से कुछ नहीं होगा।
आचरण राम के धारो तो कोई बात बने।।
चांद मंगल पे खोज पानी की रहने दो अभी।
डूबती धरती उबारो तो कोई बात बने।।
By
~ नीरज शर्मा
नयागांव सीतापुर उत्तर प्रदेश