कैसे रखें वो राब्ता जिसका कोई अंजाम नहीं। तुम उसकी बाँहों में रहो अपने बस का ये काम नहीं।

कैसे रखें वो राब्ता जिसका कोई अंजाम नहीं।
तुम उसकी बाँहों में रहो अपने बस का ये काम नहीं।

हम तो आदी हैं पहले से दिल पे ठोकर खाने के।
जो तेरे पहलू में गुजरे हमको नसीब वो शाम नहीं।

तेरे ख्वाब हैं चाँद सितारे वो सब कहाँ से लाए हम।
गर बाज़ार में बिक भी जाएं तो इतने हमारे दाम नहीं।

तुझको हम हांसिल हो गए यूँही बड़ी आसानी से।
कभी पूँछो शहर के लोगों से इतने तो हम आम नहीं।।

केवल भी इक इन्सां हैं उसके भी अरमान है कुछ।
माना कि छ्लके हैं बहुत पर तेरी कसम हम जाम नहीं।।

________ अमित ‘केवल’

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