प्रेम क्या हैं…….?
प्रेम क्या हैं…….?
किसी बूढ़ी गोपी का कृष्णा हीं प्रेम हैं,
भूखे पंक्षीयों का दाना हीं प्रेम हैं,
माँ की आँचल में छुपकर रोना हीं प्रेम हैं,
कुत्ते के बच्चे को खाना खिलाना भी प्रेम हैं,
किसी रोते हुये बच्चे को हसाना भी प्रेम हैं,
किसी को अपना दुःख बताना भी प्रेम हैं,
शराबी की नज़र में उसका मयखाना भी प्रेम हैं,
जीती बाजिया हार जाना भी प्रेम हैं,
शबरी का राम के लिये जूठे बैर खिलाना भी प्रेम हैं,
कृष्ण का सुदामा के लिये रोना भी प्रेम हैं,
राधा का कृष्णा का त्याग करना भी प्रेम हैं,
दूर रहकर भी एक दूसरे को एहसास करना प्रेम हैं,
अयोध्यावासियों का राम के लिये दीपक जलाना भी प्रेम हैं,
हवा के चलने से रोशनी का ना बुझना भी प्रेम हैं,
प्रेम उनकी बाहों में सोना कब हैं,
प्रेम किसी के जिस्म के बारे में सोचना कब हैं,
प्रेम के हजारों रंग लाखों कहानियाँ पड़ी हैं,
प्रेम जैसा भी हैं, मेंरी रग -रग को भाता हैं,
हम जैसे भी हैं हमें प्रेम वैसा हीं भाता हैं।
प्रिया पाण्डेय “रोशनी “