परिवार

शीर्षक-परिवार
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क्लांत मन के लिये कल्पद्रुम,
अशांत मन की शीतल छाया,
दे प्रकाश दूर करे अंतः तम,
ऐसी अद्भुत परिवार की माया।

है परिवार का साथ तो मन आनंदित,
चाचा चाची,बुआ ,मौसी,भैया भाभी,
साथ गुजारे पल करते आह्लादित,
परिवार ही है खुशियों की चाभी।

आधुनिक युग में स्वरूप कुछ बदल गया,
अब परिवार एकल हो सिमट गया।
आज के बच्चे नहीं जानते गर्मियों की छुट्टी की मस्ती,
नानी घर जाना मामा मामी भाई बहनों संग धमाचौकड़ी।

घट रही महत्ता परिवार की इस युग में,
खोये रहते माँ बाप और बच्चे मोबाइल की धुन में।
आभासी जगत ने कर लिया यथार्थ पर कब्जा,
तभी बढ़ रही ‘डिप्रेशन’और आत्महत्या।

प्रभु वरद हस्त जिस पर रखते,उसे ही परिवार का सुख हैं देते,
समझो इसके महत्व को,देर होगी ग़र अब भी नहीं सचेते।
मृदु हृदय में भावनाओं का सार है यह,
पुलकित तन,स्निग्ध मन का आधार है यह।
रीमा सिन्हा(लखनऊ)

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