मजबूर हूँ प्रिये

मजबूर हूँ प्रिये

तुम कुसुम लता सी
मैं पर्वत जैसा
तुम लदी चढ़ी सी मुझ पर
मैं भावहीन पत्थर सा
तुम सुकुमार नदी सी
मैं तैरती कश्ती
तुम उदास सी बरखा
मैं गरजता बादल
ऐसा नहीं मैं तरल हृदय नहीं
दर्द मेरे भी बहता
दिल भावनाओं का समंदर
पर शरीर फ़ौलादी
क्योंकि मैं हूँ एक सिपाही
मातृभूमि की रक्षा हेतु
मैंने क़सम है खाई
चल देता हूँ छोड़कर
बिलखती बिसूरती तुम
पर मजबूर हूँ
प्रिये !!

ऋचा

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