हिमालय
हिमालय
खड़ा हिमालय देखो कैसा,
देख रहा आकाश की ओर
नभ छूने की आशा लेकर,
बांह फैलाता है उस छोर।
श्वेत धवल सी आभा इसकी,
हिम से आच्छादित होता है।
हॅंसी ठिठोली ये करता है,
मनुज मन को मोह लेता है।
सूरज की किरणें जब पड़ती,
हिमालय काया चमक उठती।
गर्मी पड़े बहता पसीना ।
हिमालय की जान निकलती।
अनुपम सुंदर पर्वत देख,
औषधीयों का आलय है।
शिवशंकर जी रमते यहाॅ॑,
यह वो परम शिवालय है।
अटल खड़ा यह पर्वत देखो
शिक्षा हमें यही दे जाता है,
अपने कर्तव्य पथ डटे रहो,
कोई न फिर डिगा पाता है।
रूप सुंदर मनमोहक हिम
सबके मन को लुभाता है।
भारत की है शान हिमालय,
नित मन आशा जगाता है
ऋषि मुनि जहां करते तपस्या,
पृथ्वी का मानदंड कहलाता।
शिवालिक यह पर्वत श्रृंखला,
सदा गर्व का भान कराता।
स्वरचित
दीपिका रुखमांगद दीप
बैतूल,मध्यप्रदेश