सृजन शब्द-बेरोजगारी
प्रभु पग धूल।
लावणी छंद।
सृजन शब्द-बेरोजगारी।
मात्रा-16,14
चरणांत-22.
बढ़ गई है बेरोजगारी,
किसे बताऊँ मजबूरी।
फिरते मारे मारे हम-सब,
होती मुश्किल लाचारी।।
चौपट होते रोजगार है,
इस पर बढ़ती महगाई।।
लाकडाउन में काम मिलता,
नहीं दूरी रखो भाई।।
मिलती है जिल्लत की रोटी,
कभी कभी करना फांके।।
होते मजदूरी के लाले ,
कहाँ जाएं कहाँ झाँके।।
तृप्ता श्रीवास्तव