गंगा माँ की धार से, होता पाप विनाश।
दोहा-
विषय-माँ गंगा
1-
गंगा माँ की धार से,
होता पाप विनाश।
गंगा के तट आइए,
करतीं नहीं निराश।।
2-
सुर सरि माँ के नीर में,
जादू भरा अपार।
ज्यों ही डुबकी मारते,
भव सरि होते पार।।
3-
गंगा बहतीं वेग से,
मन मेरा हरसाय।
पापी पलते पाप से,
दिल मेरा दहलाय।।
4-
नदी भरी है नीर से,
प्यारी गंगा धार।
मन्द पवन की चाल है,
नौका लेव निहार।।
5-
गंगा दूषित हो रही,
करते पापी स्नान।
गंगा धीरज खो रही,
नभ सें देखें भान।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश