गंगोत्री से निकल कर कहाँ कहाँ तुम जाती हो।
प्रभु पग धूल।
विषय-चित्र चिंतन।
चित्र आधारित वर्णनात्मक शैली।
हर हर गंगे जय जय गंगे।
गंगोत्री से निकल कर कहाँ कहाँ तुम जाती हो।
माँ का पूरा कर्त्तव्य निभाकर सब को पवित्र करती हो।
जगह जगह तुम ने अपने सीने पर पुल बनवा कर आवागमन बनाती हो।
ऋषिकेश में छोटा सा पुल पैदल चलने वालों को लक्षमण झूला का सुख देती हो।
सबके पाप हर लेने वाली माँ मोक्ष दायनी कहलाती हो।
हम मानवों ने तुम्हें गंदगी से भर दिया, फिर भी तुम पतित पावनी हो।
भगवान विष्णु के चरणों में स्थान तुम्हारा विष्नुपदी कहलाती हो।
शंकर की जटाओं से बहकर माँ जाह्नवी बन जाती हो।
जाने कितनी नदियों से मिलकर प्रयागराज तीर्थ बनाती हो।
टिहरी बांध परियोजना के कारण सबको बिजली उत्पादन में वृद्धि करती हो।
उत्तर काशी नारायण प्रयाग में बहुत गंदगी है, फिर भी तीर्थ बनाती हो।
प्रयागराज में यमुना सरस्वती से मिल कर गंगा सागर तक जाती हो।
भागीरथी बन कर सबको मोक्ष देने बाली कपिल मुनि से डर जाती हो।
हुवली तक विस्तार तुम्हारा सबको मोक्ष दे कर सागर में मिल जाती हो।
सबका उद्धार करने बाली माँ गंगा तुम्हें शत-शत प्रणाम।
हर-हर गंगे जय जय गंगे।
स्वरचित कविता तृप्ता श्रीवास्तव।