है बड़ी सोच उर में भरी, पाप गंगा नहाने लगे।
🥀वल्लकी छंद🥀
(212 211 121 2,
21 221 221 2 )
1-
है बड़ी सोच उर में भरी,
पाप गंगा नहाने लगे।
ऐ घनी रैन मन में सजी,
भोर न्यारी छटाने लगे।।
साँच से दूर चलते रहे,
पाप लीला रचाने लगे।
खून से पेट भरते रहे,
जीव भोले सताने लगे।।
2-
क्रोध कीं तेज लपटें जले,
देह मेरी जलाने लगे।
मोह की धार तन में बहे,
आज देखो बहाने लगे।।
लोभ में लोग हिम से जमे,
धीर मेरा गलाने लगे।
घूमते लोग मद में भरे,
पीर मेरी बढ़ाने लगे।।
3-
श्याम आके जब हमें मिले,
श्याम में ही समाते गए।
आज भूले हम बुरा भला,
गीत प्यारे भुलाते गए।।
ज्ञान के सागर मिले मुझे,
नैन तारे लुभाते गए।
देख मेरा मन उदास है,
श्याम आँखे चुराते गए।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश