जलने लगी लख होलिका, प्रहलाद जी जलते नहीं।
🥀हरि गीतिका छंद🥀
112 12 112 12,
112 12 112 12
विषय-होलिका दहन
1-
जलने लगी लख होलिका,
प्रहलाद जी जलते नहीं।
हरि से लगी तन डोर थी,
इस डोर से गिरते नहीं।।
मरने लगी जब होलिका,
कहने लगी शिव ने छला।
तुमने हमें शिव क्यों छला,
छल से भरी शिव की कला।।
2-
करनी बुरी जिसमें भरी,
सबसे बुरी उसकी घड़ी।
करते सदा मन सें भला,
घटना बुरी उसकी कड़ी।।
हरि को भजे सुख से रहे,
सबसे जुड़ी हरि की कड़ी।
जलती रहे अब होलिका,
प्रभु से कटी उसकी लड़ी।।
💥🌼💥🌼💥🌼💥
🥀प्रभुपग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश