अवध में उदासी रहे रात दिन। लखन राम सीता कृपा सिंधु बिन।

शक्ति छंद पर

अवध में उदासी रहे रात दिन।
लखन राम सीता कृपा सिंधु बिन।।
बुरा कैकई को कहें लोग सब।
यही वन भिजाऐ सियाराम जब।।

तजे प्राण दशरथ कलपते हुए।
बिना राम के वो तड़पते हुए।
भरत कैकई को सुनाई बड़ी।
कपट ने उसी के दिखाई घड़ी।।

भरत को न स्वीकार था राज्य वो।
सियाराम वन को दिया भेज जो।।
मनाने चला राम का लाडला।
करेंगे दया राम होगा भला।।

खड़ाऊ उसे राम ने भेंट की।
जलन सब जिया में लगी मेट दी।।
फिरे राम जब तो तिलक कर दिया।
भरत पेश अद्भुत नमूना किया।।

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