जयकारी / चौपई छंद*
*विधा – जयकारी / चौपई छंद*
*15 मात्रा*
*मापनी- 222 222 21*
*सुंदर भाव*
करना नित तुम सुंदर काम।
तभी मिलेगे तुमको राम।।
तेरी नौका करते पार ।
वो ही थामे है पतवार ।
मात पिता होते अवतार ।
करना हरदम उनसे प्यार ।
तुझको पाले वो ही आज ।
कल तुम करना उनके काज।।
करना वैसे नित तू कर्म ।
जो होए है मानव धर्म ।।
उसका होता जग में नाम ।
खुश होते फिर अंदर राम ।।
अंतर्मन में बैठे राम ।
लेना हरपल उनका नाम।।
कण-कण में जो देखे आज ।
वो ही करता पावन काज ।।
चलो चले हम करने धाम ।
जिसमें होता सेवा काम ।।
तू समाज को अपना मान।
तब मिलती सच्ची पहचान ।।
*व्यंजना आनंद”मिथ्या “*