मोर को रहे निहार मोर नैन नीर धार, मोर नाचते लखो हरें अपार पीर को।
◆ कलाधर छंद ◆
विधान—गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु।
अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण।
21 21 21 21 21 21 21 21,
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विषय-मोर
1-
मोर को रहे निहार मोर नैन नीर धार,
मोर नाचते लखो हरें अपार पीर को।
मेघ हैं घने विशाल मोर नाच देख आज,
पंख सात रंग के हरें हमार धीर को।।
रोम रोम श्याम मान मोर पंख शीश जान,
जान मोर नाग काल रोग दोष टालते।
देख लो बसंत है बड़ा खुशाल मोर नाच,
नीर धार मोर नैन प्रेम शोक पालते।।
2-
मोर शोक श्याम टाल पाप पीर टाल श्याम,
आज हैं बड़े उदास देख मोर नाचते।
पाठ वेद ज्ञान वान आज ही सचार श्याम,
गीत राग राम राग अंक ज्ञान बांटते।।
आपका अपार ज्ञान सार वान ज्ञान वान,
मोर देश आन वान मोर शान मानते।
पंख मोर हाथ बांध टाल रोग दोष आज,
मोर पंख टांग द्वार नाग दोष टालते।।
3-
मोर लेख देश शान श्याम की पसंद मोर,
ज्ञान की अपार खान पाप का विनाश है।
पंख धार लेख अंक ज्ञान की सचार भोर,
मोर नाच देख श्याम सोच देह नाश है।।
मेघ राज मोर जान मोर बोल शीलवान,
ऐ हवा खुशी भरे टली घड़ी दुखी बड़ी।
शाम की घड़ी अजीब खोलती नसीब देख,
मोर शाम नाचते मिली हमें खुशी घड़ी।।
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश
सादर समीक्षार्थ प्रेषित है आदरणीय👏💐👏