तु ही हे सृष्टि की कला है तुमसे ही संसार चला है

नारी तू नारायणी

तु ही हे सृष्टि की कला है
तुमसे ही संसार चला है

कभी राखी से तुम बहन बनी हे
पत्नी बनकर जीवन ज्योत जला है

सृष्टि का शृंगार भी तू है
प्रकृति का उपहार भी तू है

माँ के रूप में सृष्टि चलाई
धरती पर तू ने त्याग अपनाई

नारी तेरे रूप अनेक हे
अनेक रूप में पूजनीय बनी हे

तुम से ही सारा संसार चला है
जीवन जीने की तुम एक कला है

शादी शृंगार का रस्म चला है
बिना दहेज तुम जिंदा जला है

तुम से ही संसार चला है
बचपन से ही तेरा प्यार मिला है

डॉ गुलाब चंद पटेल
कवि लेखक अनुवादक
अध्यक्ष महात्मा गांधी साहित्य मंच गांधीनगर Mo 8849794377

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