कायनात की श्रेष्ठतम कृति, विधाता की सर्वात्तम रचना,

*अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष कार्यक्रम के तहत*
दिनांक-8/3/21
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*स्त्री… *

जी हाँ,
कायनात की श्रेष्ठतम कृति,
विधाता की सर्वात्तम रचना,
किन्तु..!!भाग्य में..!!
सुकून पल भर का भी नहीं,
सारी सृष्टी को स्नेह का पाठ पढाने वाली ,
कई कई रूपों में प्यार लुटाने वाली,
माँ,बहिन,पत्नि,बेटी,सखा..
अपनी उदासियों….
परेशानियों में भी,
सदा मुस्कुराने वाली,
जहां में उसका कुछ है,
अगर..!! तो वो हैं…
जिम्मेदारियाँ….
तनहांइयाँ…..
रुसवाईयाँ..!!
इन्हीं सबसे झूझती,
एक दिन, बस एक दिन..!!
जहां से रूखसत हो जाती है,
सुकूनं ..!!
सुकूनं..!!
जाने क्यूं रूठा रहता है…
जब ! तब ! , आँखों से ,
बह जाया करता है…
देखकर तेरी व्यथा,
उसने( ईश्वर)ने भी कहा होगा,
माँ ! तू क्या क्या सहती है…
सदा मौन रहती है…
कहकर सर अपना ,
शिद्दत से झुकाया होगा..!
किस माटी से बनाया होगा,
तुझको बनाकर ,
भगवान भी,शायद रोया होगा,
क्या लिख दिया !
सोचकर …
चैन से न कभी सोया होगा..
अपनी ही रचना पर,
पछताया होगा…
तुमको..
ऐसे ही अब सदा रहना है,
भारी मन से …
समझाया होगा…
शायद ..
आसमां ने फैसला एक उठाया होगा,
जब जब आँखें तेरी भर आयेगीं,
तब तब रोयेगी सारी कायनात भी,
समझ न सका कोई,
ये कैसा अनुबंध है,
और हम नादां,
कह देते जिसे बारिश हैं……
कह देते जिसे बारिश हैं….!!

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सुखमिला अग्रवाल
”भूमिजा”
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मुम्बई

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