देह से साँस की मेल है जिन्दगी l ये न समझो हँसी खेल है जिन्दगी
✍️✍️✍️जिन्दगी ✍️✍️✍️
देह से साँस की मेल है जिन्दगी l
ये न समझो हँसी खेल है जिन्दगी ll
है कभी संगमरमर, अटारी, महल l
झोपड़ी और खपरैल है जिन्दगी ll
यह सचिन, लक्ष्मण, कोहली की तरह l
और हिटमैन, क्रिस गेल है जिन्दगी ll
पाठ है, प्यार है, पेट पर्दा भी है l
तो कभी ईंट की रेल है जिन्दगी ll
जिन्दगी खेत, खलिहान, वन, बाग है l
दीप, बाती कभी तेल है जिन्दगी ll
है कभी भीड़, बारात, शहनाइयाँ l
पीर, तन्हाइयाँ, जेल है जिन्दगी ll
ये तो बचपन, बुढ़ापा, जवानी भी है l
मौत के खेल में फेल है जिन्दगी ll
ग्राम कवि सन्तोष पाण्डेय “सरित” गुरु जी गढ़ रीवा (मध्यप्रदेश) 8224913591 /8889274422
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