अनपढ़ मेरी सासु बहुत है, नहीं जानती क्या तो मैं हूँ!
छंद मुक्त – कविता!
बिषय- मेरी सासु रुलाये आँसू!
अनपढ़ मेरी सासु बहुत है,
नहीं जानती क्या तो मैं हूँ!
केवल एक जानती है वह,
घर का मुखिया केवल मैं हूँ, !!
शासन करती घर में अपनी, एक सूत में बांधे रहती, !
जो कुछ कहती करना पड़ता, नही ताडना वह भी करती!!,
नई बहू में उसका शासन,
कुछ अलग अंदाज का होता!
खान पान ब्योहार बात में,
उसका शासन अलग ही होता!!
सासु का मतलब नही समझती, केवल वह अधिकार जानती !
शासन करना मुख्य जानती,
अपना वह अधिकार समझती!!,
बहुये रोयें आंसु बहाये,
उनके दंड से दंडित होकर, !
दुख कभी मैं किसे बताऊँ,
नहीं सुने कोई अपना होकर, !!
नौकर का ब्यवहारें करती, कभी भी मीठा नहीं बोलती,
घर में सांडा बनकर रहती,
सभी आँसु भर खूब रुलाती!!
बेटी बहू में अंतर समझे, बेटी को वह खास मानती!
अपने बहू को परा समझती, परा समझ ब्यवहार भी करती, !!
मेरी सासु रुलाये आँसू,
आज नहीं कल बनूँ गी उसकी!
समय समय का फेरा है वह,
कभी बनायेगी वह अपनी!!
अमरनाथ सोनी अमर सीधी,
9302340662