हे दिव्य शक्ति, हे अजेय शक्ति हे जग माता , तू आदि शक्ति अवतारी है
हे दिव्य शक्ति, हे अजेय शक्ति
हे जग माता , तू आदि शक्ति अवतारी है
हे जग जननी हे, हे मानुष निर्माता
तूं तो है अपारजिता, फिर क्यों मन से हारी है
शक्ति से सबल है, लेकिन मन से निर्बल है
सहज ही समर्पण क्यों कर देती है
नर पिशाच की दूषित इच्छाओं पर
निज तन मन को क्यों परोस देती है
कर देती निज अरमानों को खाक
तन्मयता से कर तूं चिन्तन,
क्या है तेरी बेबसी और क्या लाचारी है
हे दिव्य शक्ति हे अतुल शक्ति
तू तो है अपारजिता, फिर क्यों मन से हारी है
मन जीते ही जीत है ,मन हारे ही हार
मन में बस अब यही धार,
नहीं सहना अब अत्याचार
बहुत सहा, भरी सभा हुआ चीर हरण
मौन रही, न कुछ कहा
राक्षस ने किया तेरा हरण
कब तक देगी तूं अग्नि परीक्षा
शदियौं से लेता रहा ,लेता रहेगा
सहती रहेगी जब तलक अत्याचार
कुछ कर विचार , न मन हार
उठा अस्त्र, कर राक्षस संहार
हे रानी लक्ष्मीबाई, हे झलकारी बाई
हे काली, हे दुर्गा, हे आदि शक्ति
हे जग माता, तूं आदि शक्ति अवतारी है
हे नारी तूं है अपारजिता,
फिर क्यों मन से हारी है
रचना कार — सुभाष चौरसिया हेम बाबू महोबा