विषय- शक्ति पीठ उत्त्पत्ति गीत पशुपति मन घबराते हैं। सबका दिल दहलाते हैं।
तर्ज-
कोयलिया गाती है
विषय-
शक्ति पीठ उत्त्पत्ति
🥀गीत🥀
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पशुपति मन घबराते हैं।
सबका दिल दहलाते हैं।
यज्ञ दक्ष जब करते हैं।
शिव को नहीं बुलाते हैं।।
जननी ने तन खो दिया।
दिल दुख समाए हैं पिया।।
पशुपति मन—–
लेके शव को शम्भु जी,
मनमें भारी रोष है।
क्रोधित अधिक हैं शिव,
किसका ऐ दोष है।।
जन जन बेहाल हैं,
हरि से पुकारते।
शव सती काटते,
रमापति निहारते।।
टुकड़े तन बिखराते।
शक्ति पीठ दरसाते।।
जननी ने—-
जिभ्या गिरी कांगड़ा में,
ज्वाला जी का पीठ है।
हिंग लाज सिर गिरा,
देखो शक्ति पीठ है।।
नीलांचल में योनि गिरी,
कामाख्या माँ न्यारी।
अंगुली प्रयाग राज,
ललिता पीठ प्यारी।।
शक्ति पीठ बतलाते।
लीला शिव जग छाते।।
जननी ने—–
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🥀प्रभु पग धूल🥀
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश