कहीँ दासताँ खुशी की कहीं गम की है कहानी कहीं तिश्नगी लबों पे कहीं आँख में है पानी
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कहीँ दासताँ खुशी की कहीं गम की है कहानी
कहीं तिश्नगी लबों पे कहीं आँख में है पानी
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दो रंग जिंदगी के हर मोड़ पे हैं बिखरे
कहीं धूप दोपहर की कहीं शाम है सुहानी
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दोनोँ के मन में मूरत इक श्याम की बसी है
है एक उसकी दासी तो दूसरी है रानी
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हर वक्त जिंदगी में है बेखुदी का आलम
फिर इश्क के नशे में मदहोश है जवानी
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रंगत उसी की, रौनक उससे जहाँन सारा
उसके जमाल से ही ये जिस्म है नूरानी
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जिंदा रखो दिलों में खुद्दारियों के सपने
गैरत नहीं तो देखो, बेकार है जवानी
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शिवशंकर तिवारी ।
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