देहमनप्राण बहके लहके अंग अंग कली चटकी
वासन्ती मधुमास
नेह निमंत्रण
अतुकांत,,,
देहमनप्राण बहके लहके
अंग अंग कली चटकी
यौवन अठखेलियाँ
पुकारे ,,तुझे,, सनम।
भीगी भीगी सी कुमुदिनी
बासन्ती पट पीत पहने
स्वर्णिल सी,,आभा सजी
गौरांगी,,इठलाई,,
सुवासित तन मन ,,चन्दन
सोलह सिंगार सजी
नव यौवना लजाई
सखे,,आओ,, बसंत आता
देह ज्वार भाटा ,,उमगता
उत्फुल्ल तन मन ,,पुकारें
द्वय ,,उन्नत उतुंग सहलाने
प्रेयसी ,,पुकारें,, नजारे दिखाने।
रति पति बान कमान से घायल
तप्त बदन ,,सिसकारी
केतकी फूली,,मधुमालती मुस्काई
रजनीकांत मेरे,,पीयूष बरसाओ
फूलों हिंडोला सजाओ
कटि कंदोरा,, किंकिनि बजे,,
छुअन से सिहरन जगे
अध्रोष्ठ,, प्यासे चातक से
नेह कली पर बरसे जमके
मिलन ,,परम सुख ,,क्षणिक ही
हृदय आह्लाद भर गया,,
आओ प्रिय,,,,रतनारी अँखियो में
बसी छब तिहारी,,
खो जाओ मुझ में,,
देह अवगुंठन में,,,
रच बस जाओ,,
आलिंगन,, उष्मील,, मोहक
एहसास मेरे,,जगा जाओ।
अमिय रस सरोबार कर मुझे
प्यासी चकवी की ,,,आस पुराओ।
आकंठ डूब जाऊ,, प्रिये,,
ऐसी पावस प्रीति रसधार बरसाओ।
बसंत आया रे सखे,,
चिर प्रतीक्षित,, मिलन घड़ी लाओ।
नेह फूल ,,सुधारस,,निर्झरणी
बरसाओ,,।
बसंत आया प्रिये,,जीवन मधु कर जाओ,,
देह सौष्ठव ,,,देख मेरा,,
मृदुल,, स्मित,, से मन हरसाओ।
नीलम व्यास ‘स्वयमसिद्धा’